Tumse dur jakr..!

#पास_आकर_मैं_बताऊंगा_किसी_दिन....
#कैसा_लगता_है_तुमसे_दूर_जाकर.....

खिल उठा है तन बदन,
जगमगाये से नयन,
बस तनिक बिचलित से मन के बीच,
हो रही उद्दीप्त यौवन की तपन!

छिन रहा उल्लास का आभास प्रति छिन,
बीतता अब समय दिन औ रात गिन-गिन!
रात के आगोश में अब तेरे बिन,
सूखती अन्तस की गागर दिन व प्रतिदिन!

जिंदगी की दौड़ से पीछा छुड़ाकर,
कह रहा हूँ रात से अब मुस्कुराकर,
पास आकर मैं बताऊंगा किसी दिन,
कैसा लगता है कि तुमसे दूर जाकर!

घरघराते बादलों की गर्जना में,
क्षीण होती इस कलम की सर्जना में,
हर पहर बस ढूंढता हूँ रूप तेरा,
ध्यान,मुद्रा,योग,व्रत हर साधना में!

हर सुबह की धूप गंगा के किनारे,
लटकती कुछ बूंदे पत्तो के सहारे,
हो रही हो उन्ही किरणों सी प्रकाशित,
तुम निलंबित होके निज उर में हमारे!

दूर स्थित घाटियों और पर्वतों से,
हो रही महसूस जैसे सनसनाहट,
यह किसी व्यवधान का संकेत है,
या कहीं से है तेरे आने की आहट!

ये जो पुरवाई उधर से चल रही है,
मानो हो जीवित उठी और कह रही हो,
हर तुम्हारे आँसुओ की कीमतें,
मैं चुकाउंगी तुम्हारे पास आकर!

पास आकर मैं बताऊँगा किसी दिन,
कैसा अब लगता है तुमसे दूर जाकर!

हेमंत राय!(स्वरचित)

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