मैं जम गया हूं झील सा,
मैं ढल गया हूं सूर्य सा,
हु समाधि लीन मैं,कराल कॉल रौद्र सा...!
छिपा लिया हु रंग सारे कृष्णिका के भांति सब,
उगा लिया हु सौम्यता ,
मैं राम सा व कृष्ण सा,
सूर्य सा अंगार हु,
पर बादलों के पार हु,
मैं आदमी से डर गया,
चुका हुआ उधार हु।
आज खुद की ही निगाहों,
में अब बेकार हु,
चढ़ के जो उतर रहा है ,
वो क्षणिक खुमार हु,
भावना के बोझ से,
दबा हुआ विचार हु,
मंज़िलो से दूर ही,
बिखर गया वो प्यार हु,
तड़प रहा हु प्यास से,
हु पानी की तलाश में,
हु पनघटो पे ही खड़ा ,
मगर मैं बेकरार हु..!
#स्वरचित
हेमन्त राय
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