संदेश

दिसंबर, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

#ब्रेवगार्ड #में #बीते #दिन..!

चित्र
#ब्रेवगार्ड #में #बीते #दिन..! याद बहुत आते हैं हमको,ब्रेवगार्ड में बीते दिन! नही रहा जाता है अब,चौरसिया और डीडी के बिन! वो डीडी का "भाई साहब",चौरसिया का "उल्लू" कहना, मोलू सर की मुस्कान और,श्री विपिन का गुस्से में रहना! वो दिन भी याद बहुत आते हैं,जब दुबे जी क्लास में आते थे, हम कस -कस के "सिसियाते" थे, दुबे जी हमें डराते हम भाभी- भाभी चिल्लाते थे! शक्तिमान व शुक्ला सर की भी यादें बहुत सताती हैं, अब चार लाइन सुनने की इच्छा मन ही मन घुट जाती है, सब कुछ आता है याद हमें, अब चाहे रात हो या हो दिन, याद बहुत आते हैं हमको,ब्रेवगार्ड में बीते दिन! हम लोग हमेशा क्लास की पिछली बेंच पे पाए जाते थे, बैठ लड़कियों के पीछे हम सबकी मौज उड़ाते थे, करते करते शैतानी जब पूरा दिन ढल जाता था, राजीव शर्मा जी की क्लास में पढ़कर पूरा मन भर जाता था, कितना भी मन रोज बनाएं, कितने भी संकल्पित हों, आर डी सर का पहला लेक्चर तो अक्सर छूट ही जाता था, ये सारी यादें चुभ जाती हैं जैसे चुभती है कोई पिन, याद बहुत आते हैं हमको ब्रेवगार्ड में बीते दिन..!

बस यही बात है..!

चित्र
#बस #यही #बात #है! ये हंसी रात है ,कुछ सवालात है, नींद गायब हुई,ऐसी क्या बात है, एक पुरानी थी डफली अचानक बजी, मन से झंकार  सरगम नयन तक सजी, बस यही सुन के ही नींद गायब हुई, बस यही बात है ,बस यही बात है। श्वास भी बांसुरी बन के बजने लगी, प्रीत के सरगमो सी वो सजने लगी, फिर जो सरगम सजे वो सुनाई दिए, फेसबुक पर वो हमको दिखाई दिए, बस यही देख के नींद गायब हुई, बस यही बात है ,बस यही बात है, नींद आयी मुझे एक पल के लिए, सारी यादें स्वपन बन के छाने लगीं, स्वप्न में भी मुझे अब वही दिख रही, बैठ के पास मेरे जगाने लगी, एक पल के लिए मैं बहुत खुश हुआ, स्वप्न ही स्वप्न में उन ने मुझको छुआ, उनके छूते मेरी नींद गायब हुई, बस यही बात है ,बस यही बात है! #हेमन्त #राय

हमारी ट्रेन यात्रा..!

चित्र
लगभग 57 मिनट की देरी के बाद हमारी दून एक्सप्रेस हरिद्वार से लगभग 11:00 बजे रात के बाद रवाना हुई ,हम भी ट्रैन में बैठे बैठे कार्बाइट में रखे कच्चे आम की तरह पके जा रहे थे,पुरानी कुछ यूट्यूब से सेव की हुई चुनिंदा वीडियो, और पुराने पुराने अपने इसी माइक्रोमैक्स यूफोरिया से खिंचे गए फोटोज को देख ,टाइम पास करते हुए थोड़ा बहुत सरकार की रेलवे व्यवस्था को कोसते हुए, "देखो यही बात करते हैं बुलेट ट्रेन लाने की,ई नही करते कि पहले जो ट्रेन हैं उसी को सही किया जाय ,टाइमिंग सही किया जाय" लेकिन क्या करे बैठने को तो मजबूर हैं ही , और कर भी क्या सकते है ऐसा भी तो नही है हमारे गाँव के बोलेरो जैसा कि अगर भोला बहुत ऐंठ दिखा रहे हैं तो टुनटुन वाली बोलेरो कर लेंगे ,एक ही रेलवे है , बस सर्विस तो जानते ही हैं अपने देश की !! फिर ट्रैन भी अपनी धीरे धीरे रफ्तार पकड़ती तो पता चलता कि अभी क्रासिंग भी करानी है किसी सुपरफास्ट की, तो फिर रुक जाती ऐसे करते करते ट्रैन लेट का टाइमिंग बढ़ता गया, अब सोचे कि चले सोए,लेकिन आस पास के कुछ लोग अभी हरकत में थे, तो उन्ही की हरकतों को देखते देखते हमे भी नींद आना बंद ह

मेरी दास्तान..!

चित्र
मेरी दास्तां......(हेमन्त राय) मैं जम गया हूं झील सा, मैं ढल गया हूं सूर्य सा, हु समाधि लीन मैं,कराल कॉल रौद्र सा...! छिपा लिया हु रंग सारे कृष्णिका के भांति सब, उगा लिया हु सौम्यता , मैं राम सा व कृष्ण सा, सूर्य सा अंगार हु, पर बादलों के पार हु, मैं आदमी से डर गया, चुका हुआ उधार हु। आज खुद की ही निगाहों,  में अब बेकार हु, चढ़ के जो उतर रहा है , वो क्षणिक खुमार हु, भावना के बोझ से, दबा हुआ विचार हु, मंज़िलो से दूर ही, बिखर गया वो प्यार हु, तड़प रहा हु प्यास से, हु पानी की तलाश में, हु पनघटो पे ही खड़ा , मगर मैं बेकरार हु..! #स्वरचित हेमन्त राय

हेमन्त को मत खोजना..!

चित्र
गाल पर आँसू लुढ़कते, अधरों पर पिघलती भावना, तेरे संग जीवन बिताने की वो,  कल्पित कामना, धड़कनों में नाद करते, जो मेरे संगीत हैं, संगीत की उस धुन को,  अपने आप से मत जोड़ना, हेमन्त मर गया है, हेमन्त को मत खोजना...!

मैं कलाम बनना चाहता हूँ..!

चित्र
#मैं #कलाम #बनना #चाहता #हूँ! मेरे दोस्त तू क्यूँ सोचता है कि मैं, "अफ़ज़ल" का प्रतिरूप हूँ, आतंकवाद की इस कुत्सित मानसिकता का मैं स्वरूप हूँ, तू कैसे मान लेता है कि मैं,  बुरहान बनना चाहता हूँ, तू मुझसे कभी मेरे मन की बात क्यों नही, सुनना चाहता है?? पर कभी थोड़ा समय निकाल और मिल मुझसे, और झाँक कर देख थोड़ा मेरे दिल में, मेरी धड़कनो को सुनने का प्रयास कर, तू मेरी सांसो की गति को, उसमे चलती सनसनाहट को, महसूस करने का प्रयत्न कर! तू देखेगा मेरे सीने में भी तुझे एक आग जलती हुई दिखाई देगी, वो आग जो "ISIS" को,"लश्कर-ए-तैयबा" को, जला देना चाहती है, मेरे कौम पर लगे कलंको के,वजूद को, मिटा देना चाहती है। मेरे रक्त का प्रवाह भी तुझे लालायित दिखाई देगा, जो चाहता होगा कि मेरे दामन पर लगा एक -एक दाग धुल जाए। मेरे धड़कनो में भी तुझे एक आवाज, सुनाई देगी, वो आवाज राष्ट्रगान गा रही होगी, वंदे मातरम की धुन गुनगुना रही होगी। और ये आवाज तुझे सायद ये भी बता देगी, तू गलत सोचता है, मैं "बुरहान" नही मैं "कलाम" बनना चाहता हूँ। मैं क

जीवन की सच्चाई देखा...!

चित्र
जीवन के अनूठे दृश्य:छोटी उम्र के अनुभव, मैंने क्या-क्या देखा; कुनबे की अंगड़ाई देखा, चाहत की गहराई देखा, विपदाओं से आंख मिली तो, जीवन की सच्चाई देखा। इश्क़ ,मोहब्बत ,कसमे,वादे, करना और मुकरना देखा, इस छोटे से काल चक्र में , मिलना और बिछड़ना देखा। दरिया की रवानी देखा, कविता,ग़ज़ल,कहानी देखा, जीने का तरकीब सिखाता, आंखों का वो पानी देखा , जीवन के इस पानीपत में, देखा बहुत लड़ाई है, कुछ लोगो को कहते देखा, अभी तो ये अंगड़ाई है। अंतर्मन में निजता साधे, बाते हवा हवाई देखा, स्याह रात के अंधियारे में, साथ खड़ी परछाई देखा। सावन की पुरवाई देखा, मौसम की चतुराई देखा, जब मधुबन में शाख मिली तो, कई कली मुरझाई देखा! #विपदाओं #से #आंख #मिली #तो  #जीवन #की #सच्चाई #देखा! #हेमन्त #राय;:-

उसे मैं कैसे कह दूँ प्यार..!

चित्र
#उसे #मैं #कैसे #कह #दूं #प्यार आँसू जल से जिसको सींचा, दिल का वो अनमोल बगीचा, उस उपवन ने ही एक दिन जब, किया मेरा अपमान ,  उसे मैं कैसे कह दूं प्यार.. मुझमे तो 'हेमन्त' अटल था, उसमे उसका अहं प्रबल था, इसी विरोधाभास में खोया, जो मैंने सम्मान , उसे मैं  कैसे कह दूं प्यार... माँगा जिसको खुद को देकर, पाया अपना सब कुछ खोकर, उसने ही जब तोड़ा मेरे, सपनो का संसार , उसे मै कैसे कह दूं प्यार.... जीवन का अनमोल खजाना, मैने जिसके नाम लुटाया, सपने जिसके खातिर देखे, दर-दर की ठोकर भी खाया, उसने मेरा छीनना चाहा, जीने का अधिकार, उसे मैं  कैसे कह दूं प्यार... #जीवन #पथ #पर #जिसने #छीना ,#अधरों #से #मुस्कान, #उसे #मैं #कैसे#कह #दूं #प्यार #हेमन्त #राय

ढूंढो अपने आप को!

चित्र
#तुम #कहाँ #हो ,#किस #जगह #हो, #ढूंढो #अपने #आप #को! रात है तो दिन भी होगा, यह अभी तुम जान लो, यह प्रकृति का खेल है, तुम बात मेरी मान लो! तुम उजाले के लिए मत, जुगनुओं के द्वार जाओ, ना कोई दीपक चुराओ, ना किसी का घर जलाओ! एक पल भीतर तो झाँको, देखो अपनी आग को, तुम कहाँ हो,किस जगह हो, ढूंढो अपने आप को! दुख जो है तो सुख भी होगा, क्या नही तुम जानते हो, है जरा सी बात इसको, क्यो नही तुम मानते हो! तुम तनिक भर में न अपने, धैर्य को खोया करो, न कभी इन व्यर्थ की बातों पे तुम , रोया करो! एक नई शुरुआत कर दो, भूल सारी बात को, तुम कहाँ हो,किस जगह हो, ढूंढो अपने आप को! धूप है तो छाँव भी होगा कहीं पर, ढूँढना सब कुछ मिलेगा इस जमीं पर, है परेशानी मगर हालात, पर रोना नहीं, एक पत्त्ता छाँव का ख़ैरात, तुम लेना नहीं! ला नया उपवन लगा दो, छोड़ पश्चाताप को, तुम कहाँ हो किस जगह हो, ढूंढो अपने आप को! ढूंढो अपने आप को! स्वरचित-हेमन्त राय!

कलम रुकेगी उसी शर्त पर जिस दिन मैं मर जाऊँगा..!

चित्र
भारत के हर जन के मन मे, इस धरती के हर कण -कण में, देश प्रेम की अविरल धारा, जब तक ना बह जाएगी, कश्मीर से अंडमान तक, केरल से तिब्बत पठार तक, राष्ट्रभक्ति की अविनाशी ज्वाला, जब तक ना जल जाएगी, मैं एक कलम सिपाही बन कर, जोर जोर चिल्लाऊंगा, चिल्लाकर मैं देश प्रेम का, गीत सुनाता जाऊँगा। चाहे कोई कुछ भी बोले, धरती भी पथ पर ना डोले, मैं जन मन का गीत अलौकिक, यू ही लिखता जाऊँगा। कलम रुकेगी उसी शर्त पर , जिस दिन मैं मर जाऊँगा। स्वरचित-हेमन्त राय