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अगस्त, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

रासायनिक प्यार..!

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टाईटेनियम सी नीली आँखे, होंठ पिंक कोबाल्ट, मन एक्सप्लोसिव डिकॉम्पोजिशन, बातें मोहर साल्ट! CO2 की शुष्क बर्फ से, उसके गोरे अंग, सिल्वर ट्रिपल पोसिटिव आयन, सा बालो का रंग! एक साथ दोनों कर जाती , ऑक्सीडेशन और रिडक्शन, दिल की वो आवर्त सारिणी, रिश्ते की रेडॉक्स रिएक्शन! हर बार उसी की यादों में , मन आयनाइज्ड हो जाता है, उससे ही संयोजित हो ,मेरा अष्टक भर पाता है!  हेमन्त राय!

वियोग....

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दिल का मानस हंस क्षुब्ध है, मग्न हुईं हर ओर व्यथाएँ, मन मे सहसा गूँज उठी हैं, कुछ प्रतिध्वनियाँ बिना बुलाये! तरुणाई भी नीरस जैसे, परछाई अब नही ठहरती, बिखर गए हैं स्याही,पन्ने, कलम नही चलती अब वैसे! इस वियोग झंझावातों में, अपने इस एकाकीपन पर, करता हूँ हर रोज निछावर, आँसू, आह,नींद,रातो में! कभी कभी सो भी जाता हूँ, सपनों के मनसूबे लेकर, पर आँखों मे भर जाती हैं, आहत तेरी आँसू बनकर! प्रिय तेरे ही आस-प्यास में, घर से तो हर रोज निकलता, जाने यह कैसी लाचारी, मिलती है हर बार विफलता! छोटी छोटी सरल बहर से, अपने इस तुतलाते स्वर से, मिलो कभी तो तुम्हे सुनाए, आँसू, कसक,टीस से निर्मित,वो अनसूय कथाएँ! दिल का मानस हंस क्षुब्ध है, मग्न हुई हर ओर व्यथाएं! Hemant Rai -

Tumse dur jakr..!

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#पास_आकर_मैं_बताऊंगा_किसी_दिन.... #कैसा_लगता_है_तुमसे_दूर_जाकर..... खिल उठा है तन बदन, जगमगाये से नयन, बस तनिक बिचलित से मन के बीच, हो रही उद्दीप्त यौवन की तपन! छिन रहा उल्लास का आभास प्रति छिन, बीतता अब समय दिन औ रात गिन-गिन! रात के आगोश में अब तेरे बिन, सूखती अन्तस की गागर दिन व प्रतिदिन! जिंदगी की दौड़ से पीछा छुड़ाकर, कह रहा हूँ रात से अब मुस्कुराकर, पास आकर मैं बताऊंगा किसी दिन, कैसा लगता है कि तुमसे दूर जाकर! घरघराते बादलों की गर्जना में, क्षीण होती इस कलम की सर्जना में, हर पहर बस ढूंढता हूँ रूप तेरा, ध्यान,मुद्रा,योग,व्रत हर साधना में! हर सुबह की धूप गंगा के किनारे, लटकती कुछ बूंदे पत्तो के सहारे, हो रही हो उन्ही किरणों सी प्रकाशित, तुम निलंबित होके निज उर में हमारे! दूर स्थित घाटियों और पर्वतों से, हो रही महसूस जैसे सनसनाहट, यह किसी व्यवधान का संकेत है, या कहीं से है तेरे आने की आहट! ये जो पुरवाई उधर से चल रही है, मानो हो जीवित उठी और कह रही हो, हर तुम्हारे आँसुओ की कीमतें, मैं चुकाउंगी तुम्हारे पास आकर! पास आकर मैं बताऊँगा किसी दिन, कैसा अ

ऐसा न था..

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ऐसा_न_था... सपनों की वो नई उमंगें, जीवन मे उल्लास चपल, हर पल को जी लेने की एक, चाहत मन मे थी प्रतिपल! झूठे ही पर ख्वाबो की उस दुनिया में खोया रहता था, जो भी था मैं जैसा भी था, साथी पर ऐसा न था! तुमने भी तो देखा होगा, हमको जीवन जीते, धामा चौकड़ी करते, हँसते-गाते-खाते-पीते! जीवन की उस सहज राह में, हँसता था या रोता था! जो भी था मैं जैसा भी था,साथी पर ऐसा न था! बुझता भी था,जलता भी था, गिरता था तो उठता भी था, नित नवीन संघर्षो के संग, लड़ता था या मरता था! जो भी था मैं जैसा भी था,साथी पर ऐसा न था! विरह,वियोग,व्यथा,संतापों, क्रोध,क्लेश,दुख,पश्चातापों, आकुलता की प्रतिध्वनियों में, खुद से बाते करता था! जो भी था मैं जैसा भी था,साथी पर ऐसा न था! साथी पर ऐसा न था! ऐसा न था! Hemant Rai~स्वरचित!

Tere nayan...

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#तेरे_नयन... चाँद सरिस मुखड़े पर चिन्हित,कैसी है यह दृष्टि हरे, जिसे देखने को लालायित है यह पूरी सृष्टि हरे! राह भटक जाए हर कोई,यह कोई अनजान शहर है, या सागर के किसी छोर से उठी मचलती हुई लहर है! क्या कोई दिनमान प्रकाशित है कुंचित घन अलकों पर, या फिर प्रातः सूर्य रश्मियाँ खेल रहीं हैं पलकों पर! कोई नीलकंठ बैठा हो,जैसे किसी झरोखे पर, या फिर कोई गाँव सजा है दीवाली के मौके पर! सोनजुही सी देह लता पर,लड़ी लगी है सावन में, या फिर कोई अमलताश की कली खिली है आँगन में! क्या कोई कवि घूम रहा है उर्मिल सागर के उस पार, जो शैल-श्रेणियों के संसृति का लिखता हो अक्षय श्रृंगार! जिसमे खोकर चन्दनवन सा, शीतल हो जाये तन मन, या हिमनद से चला आ रहा हो कोई हिमखंड चिरंतन, देख मात्र देने पर जैसी आह निकलती प्राणों से, मनहु भोगिनी तड़प रही हो कामदेव के बाणों से, अंतर्मन को स्निग्ध बनाती पलको पर झपती मुस्कान, जैसे किसी कुंज पर पसरा रूप दर्प का सहज वितान! क्या कोई दिव्य ज्योति रक्खी है मरियम के सिरहाने में, या कोई नागिन छोड़ गई है नागमणी अनजाने में! अंशमात्र वर्णन कर पाने में जब इतनी कठिनाई

Kabhi kabhi...

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कभी कभी उनकी यादों में,मर मर कर जी लेते हैं, कभी आँसुओ के सागर भी हँसकर के पी लेते हैं! कभी कभी मन मे आता है,छोड़ो न अब बहुत हुआ, कभी उन्हें पाने के खातिर दृढ़ निश्चय कर लेते हैं! कभी कभी बैठे बैठे दोनों आंखे भर आती हैं, कभी काँपते होठों से भी हम थोड़ा हँस लेते हैं! कभी उलझकर प्रश्नों में जब धैर्य कहीं खो जाता है, कभी फोन पर बातें करके मन हल्का कर लेते हैं! कभी कभी मन की विह्वलता जब विचलित कर देती है, कभी कभी बैठे बैठे कुछ कविताएं लिख लेते हैं! कभी कभी तन्हाई का आलम कुछ यूँ हो जाता है, कभी भरी महफ़िल में भी हम निपट अकेले होते हैं! कभी कभी अपनों की बातें ही अनजानी सी लगतीं, कभी कभी तितली के पंखों में भी धुन सुन लेते हैं! कभी कभी विस्फारित नयनों से निश्चल जल जब बहता, कभी उसी जल से सिंचित कर प्रेम बीज बो लेते हैं! कभी वृथा में प्रणय विवश हो मन पतंग जल जाता है, कभी बिना पंखों के ही उड़कर अम्बर छू लेते हैं! #हेमन्त_राय(स्वरचित)

Tum khadi ho sath mere...

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#तुम #खड़ी #हो #साथ #मेरे,#साथी #मेरे! हर सुबह,हर दोपहर हो साथ मेरे, हर गली,कूँचे, शहर हो साथ मेरे, हर कोई छोड़े मेरा संग है मुझे स्वीकार लेकिन, चाहता बस तुम खड़ी हो साथ मेरे! तुम खड़ी हो साथ मेरे,साथी मेरे,साथी मेरे! मैं तेरा चेहरा प्रिये कब देखता हूँ, तुमको मैं अपनी ही छाया सोचता हूँ, चाहे हर दुख झेलना मुझको पड़े पर, चाहता हूँ मुस्कुराएं होंठ तेरे! तुम खड़ी हो साथ मेरे,साथी मेरे,साथी मेरे! क्यों तेरे खातिर अलग से घर बनाएँ! क्यों तेरा स्थान कोई और पाए, क्यों तुम्हे खोने का डर मुझको सताए, जानता तुम रह रही हो दिल में मेरे! तुम खड़ी हो साथ मेरे,साथी मेरे,साथी मेरे! बस तेरे ही ख्वाब दिल में बुन रहा हूँ, राह का काँटा सभी मैं चुन रहा हूँ, ना कोई कंकड़ ना काँटा हो वहाँ पर, जिस जगह पर पड़ रहे हों पाँव तेरे! तुम खड़ी हो साथ मेरे ,साथी मेरे....साथी मेरे! नेह के सागर छलकते हों कहीं पर, प्यार के मोती बिखरते हों जमीं पर, चाहता मन तुझको ले जाएं जहां पर, चांद -तारों से सजे सृंगार तेरे! तुम खड़ी हो साथ मेरे,साथी मेरे.....साथी मेरे! हर मेरी कविता ,कहानी तुम पे हो बस, ये मेर

Vo hansi raat fir se aayegi..

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वो हँसी रात फिर से आएगी, मैं जो रूठूँ तो वो मनाएगी! वो हँसी रात..... फिर से छज्जे पे जा खड़ी होगी, फिर वहीं से वो मुस्कुराएगी! वो हँसी रात... मुझको बस देखने भर खातिर, अपना वो फेसबुक बनाएगी! वो हँसी रात.... देखकर शायरी मेरी उस पर, खुद के अहसास को वो पाएगी! वो हँसी रात.... बैठकर सामने मेरे एक दिन, मुझको खाना वही खिलाएगी! वो हँसी रात.... फिर से पागल कहूँगा मैं उसको, फिर वो आँखे मुझे दिखाएगी! वो हँसी रात... मैं जो बेवक्त सो गया फिर से, मुझको छूकर मुझे जगाएगी! वो हँसी रात... अपने घर से शहर जो जाऊँगा, बैठे आँसू वो फिर बहायेगी! वो हँसी रात... वो हँसी रात,फिर से आएगी , मैं जो रूठूँ तो वो मनाएगी! वो हँसी रात.... #स्वरचित- #हेमन्त #राय

Sath khada tha koi..!

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#साथ #खड़ा #था #कोई!(पिता जी को समर्पित) जीवन में समरसता थी, मधुता का उत्तुंग शिखर था, हर लता प्रफुल्लित,कुसुमित थी, नवकिसलय सा हर एक पहर था, हर पहर-पहर हर डगर-डगर, बस साथ चला था वो ही, स्याह अँधेरी रातो में भी साथ खड़ा था कोई! जीवन के उस पतझड़ में, जब सारे पुष्प ,पत्र सूखे थे, सारी कलियाँ मुरझाई, व हर मुक्तक जब टूट गिरे थे, तब चिरलग्न मुकुल सा मुझमें, सहज जुड़ा था वो ही! स्याह अँधेरी रातों में भी साथ खड़ा था कोई! जब तीक्ष्ण वेदना के स्वर ने, अंतर्मन को ललकारा, धीरज का वो पुल टूटा, विपरीत हुई हर धारा, बाहुबल कमजोर पड़ा,और मांगा कोई सहारा, तब जीर्ण-शीर्ण हो रही बाजुएँ थाम रहा था वो ही, स्याह अँधेरी रातों में भी साथ खड़ा था कोई! थी विकट परिस्थिति,और सघन था अंधकार, जीवन में, सब कुछ खो देने का डर था अंतर्मन में! जब रवि ने भी मुँह मोड़ा, परछाईं ने भी संग छोड़ा, हर घनघोर कुहासे से निर्भीक लड़ा था वो ही! स्याह अँधेरी रातों में भी साथ खड़ा था कोई! #स्वरचित #हेमन्त #राय फ़ोटो साभार इंटरनेट!

Tum meri ho kaun...!

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#तुम #मेरी #हो #कौन! तुम हमारे प्राण, प्रण की प्रेरणा हो, तुम हमारे काव्य की अवधारणा, प्रीत की संवेदना,अनुभूति तुम हो, तुम हो मेरे भाव की अभिव्यंजना! तुम मेरी तनहाईयों में मीत हो, तुम मेरे कोमल हृदय का गीत हो, देखो कितनी सहजता से हार जाता हूँ मैं तुमसे, तुम हमारी हार में भी जीत हो! तुम न होती आज शायद मर ही जाता, तन से जीता मैं,मगर मन जी न पाता, तुम मिली हो आज देखो हँस रहा हूँ, आँख का आँसू मैं किस-किस से छुपाता? तन मेरा तेरे बिना निष्प्राण है, कल्पना की शक्ति निर-आधार है, चाहता है मन तूँ हरदम मुस्कुराए, इस हृदय को दर्द भी स्वीकार है! तुम मेरे सूने हृदय की चेतना हो, तुम मेरे स्तब्ध मन की कल्पना, प्यार करता हूँ तुम्ही से ,बस तुम्ही से, तुम मेरे हर दर्द की हो वेदना! तुम हमारी प्राण,प्रण की प्रेरणा हो , तुम हो मेरे काव्य की अवधारणा! #स्वरचित #हेमन्त #राय