ऐसा न था..

ऐसा_न_था...

सपनों की वो नई उमंगें,
जीवन मे उल्लास चपल,
हर पल को जी लेने की एक,
चाहत मन मे थी प्रतिपल!

झूठे ही पर ख्वाबो की उस दुनिया में खोया रहता था,
जो भी था मैं जैसा भी था,
साथी पर ऐसा न था!

तुमने भी तो देखा होगा,
हमको जीवन जीते,
धामा चौकड़ी करते,
हँसते-गाते-खाते-पीते!

जीवन की उस सहज राह में,
हँसता था या रोता था!
जो भी था मैं जैसा भी था,साथी पर ऐसा न था!

बुझता भी था,जलता भी था,
गिरता था तो उठता भी था,
नित नवीन संघर्षो के संग,
लड़ता था या मरता था!

जो भी था मैं जैसा भी था,साथी पर ऐसा न था!

विरह,वियोग,व्यथा,संतापों,
क्रोध,क्लेश,दुख,पश्चातापों,
आकुलता की प्रतिध्वनियों में,
खुद से बाते करता था!

जो भी था मैं जैसा भी था,साथी पर ऐसा न था!
साथी पर ऐसा न था!
ऐसा न था!

Hemant Rai~स्वरचित!

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