Tum meri ho kaun...!

#तुम #मेरी #हो #कौन!

तुम हमारे प्राण, प्रण की प्रेरणा हो,
तुम हमारे काव्य की अवधारणा,
प्रीत की संवेदना,अनुभूति तुम हो,
तुम हो मेरे भाव की अभिव्यंजना!

तुम मेरी तनहाईयों में मीत हो,
तुम मेरे कोमल हृदय का गीत हो,
देखो कितनी सहजता से हार जाता हूँ मैं तुमसे,
तुम हमारी हार में भी जीत हो!

तुम न होती आज शायद मर ही जाता,
तन से जीता मैं,मगर मन जी न पाता,
तुम मिली हो आज देखो हँस रहा हूँ,
आँख का आँसू मैं किस-किस से छुपाता?

तन मेरा तेरे बिना निष्प्राण है,
कल्पना की शक्ति निर-आधार है,
चाहता है मन तूँ हरदम मुस्कुराए,
इस हृदय को दर्द भी स्वीकार है!

तुम मेरे सूने हृदय की चेतना हो,
तुम मेरे स्तब्ध मन की कल्पना,
प्यार करता हूँ तुम्ही से ,बस तुम्ही से,
तुम मेरे हर दर्द की हो वेदना!

तुम हमारी प्राण,प्रण की प्रेरणा हो ,
तुम हो मेरे काव्य की अवधारणा!

#स्वरचित
#हेमन्त #राय

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