Kabhi kabhi...
कभी कभी उनकी यादों में,मर मर कर जी लेते हैं,
कभी आँसुओ के सागर भी हँसकर के पी लेते हैं!
कभी कभी मन मे आता है,छोड़ो न अब बहुत हुआ,
कभी उन्हें पाने के खातिर दृढ़ निश्चय कर लेते हैं!
कभी कभी बैठे बैठे दोनों आंखे भर आती हैं,
कभी काँपते होठों से भी हम थोड़ा हँस लेते हैं!
कभी उलझकर प्रश्नों में जब धैर्य कहीं खो जाता है,
कभी फोन पर बातें करके मन हल्का कर लेते हैं!
कभी कभी मन की विह्वलता जब विचलित कर देती है,
कभी कभी बैठे बैठे कुछ कविताएं लिख लेते हैं!
कभी कभी तन्हाई का आलम कुछ यूँ हो जाता है,
कभी भरी महफ़िल में भी हम निपट अकेले होते हैं!
कभी कभी अपनों की बातें ही अनजानी सी लगतीं,
कभी कभी तितली के पंखों में भी धुन सुन लेते हैं!
कभी कभी विस्फारित नयनों से निश्चल जल जब बहता,
कभी उसी जल से सिंचित कर प्रेम बीज बो लेते हैं!
कभी वृथा में प्रणय विवश हो मन पतंग जल जाता है,
कभी बिना पंखों के ही उड़कर अम्बर छू लेते हैं!
#हेमन्त_राय(स्वरचित)
कभी आँसुओ के सागर भी हँसकर के पी लेते हैं!
कभी कभी मन मे आता है,छोड़ो न अब बहुत हुआ,
कभी उन्हें पाने के खातिर दृढ़ निश्चय कर लेते हैं!
कभी कभी बैठे बैठे दोनों आंखे भर आती हैं,
कभी काँपते होठों से भी हम थोड़ा हँस लेते हैं!
कभी उलझकर प्रश्नों में जब धैर्य कहीं खो जाता है,
कभी फोन पर बातें करके मन हल्का कर लेते हैं!
कभी कभी मन की विह्वलता जब विचलित कर देती है,
कभी कभी बैठे बैठे कुछ कविताएं लिख लेते हैं!
कभी कभी तन्हाई का आलम कुछ यूँ हो जाता है,
कभी भरी महफ़िल में भी हम निपट अकेले होते हैं!
कभी कभी अपनों की बातें ही अनजानी सी लगतीं,
कभी कभी तितली के पंखों में भी धुन सुन लेते हैं!
कभी कभी विस्फारित नयनों से निश्चल जल जब बहता,
कभी उसी जल से सिंचित कर प्रेम बीज बो लेते हैं!
कभी वृथा में प्रणय विवश हो मन पतंग जल जाता है,
कभी बिना पंखों के ही उड़कर अम्बर छू लेते हैं!
#हेमन्त_राय(स्वरचित)
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