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कुछ समझना है अपने को भी.....

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हिन्दू  एक हजार वर्ष पूर्व हिंदू शब्द का प्रचलन नहीं था। ऋग्वेद में कई बार सप्त सिंधु का उल्लेख मिलता है। सिंधु शब्द का अर्थ  नदी या जलराशि  होता है इसी आधार पर एक नदी का नाम सिंधु नदी रखा गया, जो लद्दाख और पाक से बहती है। ईरानी अर्थात पारस्य देश के पारसियों की धर्म पुस्तक ‘अवेस्ता’ में ‘हिन्दू’ और ‘आर्य’ शब्द का उल्लेख मिलता है। भाषाविदों का मानना है कि हिंद-आर्य भाषाओं की ‘स’ ध्वनि ईरानी भाषाओं की ‘ह’ ध्वनि में बदल जाती है। आज भी भारत के कई इलाकों में ‘स’ को ‘ह’ उच्चारित किया जाता है। इसलिए  सप्त सिंधु  अवेस्तन भाषा (पारसियों की भाषा) में जाकर हप्त हिंदू में परिवर्तित हो गया। इसी कारण ईरानियों ने सिंधु नदी के पूर्व में रहने वालों को हिंदू नाम दिया। किंतु पाकिस्तान के सिंध प्रांत के लोगों को आज भी  सिंधू या सिंधी  कहा जाता है। दूसरी ओर अन्य इतिहासकारों का मानना है कि चीनी यात्री हुएनसांग के समय में हिंदू शब्द की उत्पत्ति ‍इंदु से हुई थी। इंदु शब्द चंद्रमा का पर्यायवाची है। भारतीय ज्योतिषीय गणना का आधार चंद्रमास ही है। अत: चीन के लोग भारतीयों को  ‘इन्तु’ या ‘ह

आधुनिक समाज पर तीखा व्यंग।

प्रकृति बदलती क्षण-क्षण देखो, बदल रहे अणु, कण-कण देखो| तुम निष्क्रिय से पड़े हुए हो | भाग्य वाद पर अड़े हुए हो| छोड़ो मित्र! पुरानी डफली, जीवन में परिवर्तन लाओ | परंपरा से ऊंचे उठ कर, कुछ तो स्टैंडर्ड बनाओ | जब तक घर मे धन संपति हो, बने रहो प्रिय आज्ञाकारी | पढो, लिखो, शादी करवा लो , फिर मानो यह बात हमारी | माता पिता से काट कनेक्शन, अपना दड़बा अलग बसाओ | कुछ तो स्टैंडर्ड बनाओ | करो प्रार्थना, हे प्रभु हमको, पैसे की है सख़्त  ज़रूरत | अर्थ समस्या हल हो जाए, शीघ्र निकालो ऐसी सूरत | हिन्दी के हिमायती बन कर, संस्थाओं से नेह जोड़िये | किंतु आपसी बातचीत में, अंग्रेजी की टांग तोड़िये | इसे प्रयोगवाद कहते हैं, समझो गहराई में जाओ | कुछ तो स्टैंडर्ड बनाओ | कवि बनने की इच्छा हो तो, यह भी कला बहुत मामूली | नुस्खा बतलाता हूँ, लिख लो, कविता क्या है, गाजर मूली | कोश खोल कर रख लो आगे, क्लिष्ट शब्द उसमें से चुन लो| उन शब्दों का जाल बिछा कर, चाहो जैसी कविता बुन लो | श्रोता जिसका अर्थ समझ लें, वह तो तुकबंदी है भाई | जिसे स्वयं कवि समझ न पाए, वह कविता है सबसे