Tere nayan...

#तेरे_नयन...

चाँद सरिस मुखड़े पर चिन्हित,कैसी है यह दृष्टि हरे,
जिसे देखने को लालायित है यह पूरी सृष्टि हरे!

राह भटक जाए हर कोई,यह कोई अनजान शहर है,
या सागर के किसी छोर से उठी मचलती हुई लहर है!

क्या कोई दिनमान प्रकाशित है कुंचित घन अलकों पर,
या फिर प्रातः सूर्य रश्मियाँ खेल रहीं हैं पलकों पर!

कोई नीलकंठ बैठा हो,जैसे किसी झरोखे पर,
या फिर कोई गाँव सजा है दीवाली के मौके पर!

सोनजुही सी देह लता पर,लड़ी लगी है सावन में,
या फिर कोई अमलताश की कली खिली है आँगन में!

क्या कोई कवि घूम रहा है उर्मिल सागर के उस पार,
जो शैल-श्रेणियों के संसृति का लिखता हो अक्षय श्रृंगार!

जिसमे खोकर चन्दनवन सा, शीतल हो जाये तन मन,
या हिमनद से चला आ रहा हो कोई हिमखंड चिरंतन,

देख मात्र देने पर जैसी आह निकलती प्राणों से,
मनहु भोगिनी तड़प रही हो कामदेव के बाणों से,

अंतर्मन को स्निग्ध बनाती पलको पर झपती मुस्कान,
जैसे किसी कुंज पर पसरा रूप दर्प का सहज वितान!

क्या कोई दिव्य ज्योति रक्खी है मरियम के सिरहाने में,
या कोई नागिन छोड़ गई है नागमणी अनजाने में!

अंशमात्र वर्णन कर पाने में जब इतनी कठिनाई है,
कितनी फुर्सत ली होगी कुदरत ने इन्हें बनाने में!

#हेमन्त_राय [ स्वरचित]

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