ढूंढो अपने आप को!

#तुम #कहाँ #हो ,#किस #जगह #हो,
#ढूंढो #अपने #आप #को!

रात है तो दिन भी होगा,
यह अभी तुम जान लो,
यह प्रकृति का खेल है,
तुम बात मेरी मान लो!

तुम उजाले के लिए मत,
जुगनुओं के द्वार जाओ,
ना कोई दीपक चुराओ,
ना किसी का घर जलाओ!

एक पल भीतर तो झाँको,
देखो अपनी आग को,
तुम कहाँ हो,किस जगह हो,
ढूंढो अपने आप को!

दुख जो है तो सुख भी होगा,
क्या नही तुम जानते हो,
है जरा सी बात इसको,
क्यो नही तुम मानते हो!

तुम तनिक भर में न अपने,
धैर्य को खोया करो,
न कभी इन व्यर्थ की बातों पे तुम ,
रोया करो!

एक नई शुरुआत कर दो,
भूल सारी बात को,
तुम कहाँ हो,किस जगह हो,
ढूंढो अपने आप को!

धूप है तो छाँव भी होगा कहीं पर,
ढूँढना सब कुछ मिलेगा इस जमीं पर,

है परेशानी मगर हालात,
पर रोना नहीं,
एक पत्त्ता छाँव का ख़ैरात,
तुम लेना नहीं!

ला नया उपवन लगा दो,
छोड़ पश्चाताप को,
तुम कहाँ हो किस जगह हो,
ढूंढो अपने आप को!
ढूंढो अपने आप को!

स्वरचित-हेमन्त राय!

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