मात पिता में दिखता मुझको पूरा भारतवर्ष
माता पिता को समर्पित एक कविता.... उठे शीश तो बने हिमालय,खुले जो दिल का द्वार, बन जाये इतना गहरा, जैसे खाड़ी बंगाल! अपनी माँ,माँ सरस्वती में तनिक दिखा ना भेद, उनसे वो सब ज्ञान मिला है,जो देता ऋग्वेद! हमने पिता में ही अपने ब्रह्मा ,विष्णु को देखा है, जिसने खींची मेरे हाथों में जीवन की रेखा है। हिन्द महासागर हाथों में,माथे पर ध्रुव तारा, निर्मल वाणी में दिखी मुझे गंगा की अविरल धारा। समृद्धि तो ऐसी जैसे हरियाणा पंजाब, प्रेम तो निर्छल ऐसे जैसे संगम इलाहाबाद। वृंदा बन की कुसुम लता सा आंखों में उत्कर्ष, मात -पिता में दिखता मुझको पूरा भारतवर्ष। मात-पिता में दिखता मुझको पूरा भारतवर्ष। स्वरचित---हेमन्त राय...